रमज़ान का पाक महीना मुसलमानों के लिए अल्लाह की रहमत और बरकत का महीना है। इस महीने में रोज़ा रखना हर मुसलमान के लिए फ़र्ज़ है, लेकिन सिर्फ़ रोज़ा रखना ही काफ़ी नहीं है। रोज़ा सुन्नत के हिसाब से रखना भी बेहद ज़रूरी है ताकि हम इसकी पूरी फ़ज़ीलत हासिल कर सकें। आज हम इस ब्लॉग में यही जानेंगे कि कैसे रोज़ा सुन्नत के हिसाब से रखा जाए और इसकी फ़ज़ीलत क्या है। आपका स्वागत है हमारे ब्लॉग DeenAurDuniya.com में जहाँ मैं इस्लामिक जानकारी, इस्लामिक दुआएं, इस्लामिक वाक्याओं और इस्लाम क्यों महत्वपूर्ण है जैसी जानकारी आपके साथ लेकर आता हूँ।
रोज़े की फ़ज़ीलत
रोज़ा इस्लाम के पाँच बुनियादी अरकान में से एक है। अल्लाह तआला ने क़ुरआन में फ़रमाया:
“ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किए गए हैं, जैसे कि तुमसे पहले के लोगों पर फ़र्ज़ किए गए थे, ताकि तुम परहेज़गार बनो।” (सूरह अल-बक़रा, आयत 183)
रोज़ा न सिर्फ़ भूख और प्यास का इम्तिहान है, बल्कि यह हमारी रूह को पाक करने और अल्लाह के करीब आने का एक ज़रिया भी है। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया:
“रोज़ा एक ढाल है, तो जब तुम में से किसी का रोज़ा हो, तो वह बदज़बानी और गुस्सा न करे।” (सहीह बुख़ारी)
सहरी: रोज़े की शुरुआत
रोज़े की शुरुआत सहरी से होती है। सहरी खाना सुन्नत है और इसमें बहुत सवाब है। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया:
“सहरी खाना खाओ, क्योंकि सहरी में बरकत है।” (सहीह बुख़ारी)
सहरी में हल्का और पौष्टिक खाना खाना चाहिए। खजूर और पानी का सेवन करना सुन्नत है। सहरी का वक़्त फज्र की अज़ान से पहले तक होता है, लेकिन इसे आख़िरी वक़्त तक टालना चाहिए।
रोज़े के दौरान क्या करें और क्या न करें
- क़ुरआन तिलावत:रोज़े के दौरान क़ुरआन पढ़ने का विशेष महत्व है। रमज़ान में क़ुरआन नाज़िल हुआ था, इसलिए इस महीने में क़ुरआन की तिलावत पर ख़ास ध्यान देना चाहिए।
- दुआ और इस्तिग़फ़ार:रोज़े के दौरान दुआओं की क़ुबूलियत का वक़्त होता है। अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी मांगें और अपनी हर ज़रूरत के लिए दुआ करें।
- ग़ैबत और झूठ से बचें:रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया:
“जो व्यक्ति झूठ बोलना और बुरे काम करना नहीं छोड़ता, तो अल्लाह को उसके भूखे और प्यासे रहने की कोई ज़रूरत नहीं है।” (सहीह बुख़ारी) - नमाज़ पर ध्यान दें:रोज़े के दौरान नमाज़ की पाबंदी करें। तरावीह की नमाज़ भी रमज़ान की ख़ास इबादत है।
इफ़्तार: रोज़ा खोलने का सही तरीक़ा
रोज़ा खोलने को इफ़्तार कहते हैं। इफ़्तार करते वक़्त खजूर और पानी से रोज़ा खोलना सुन्नत है। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया:
“जब तुम में से कोई रोज़ा इफ़्तार करे, तो खजूर से करे। अगर खजूर न मिले, तो पानी से करे, क्योंकि पानी पाक है।” (सुनन अबू दाऊद)
इफ़्तार के वक़्त यह दुआ पढ़ें:
“अल्लाहुम्मा लक़ा सुम्तु व अला रिज़्क़िका अफ़्तरतु।”
(ऐ अल्लाह! मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा और तेरे दिए हुए रिज़्क़ से इफ़्तार किया।)
रोज़े की क़बूलियत के लिए ज़रूरी बातें
- नियत:रोज़े की नियत दिल से करें। बिना नियत के रोज़ा नहीं होता।
- हराम चीज़ों से बचें:रोज़े के दौरान खाने-पीने, ज़िना और ग़ुस्से से बचना ज़रूरी है।
- सदक़ा और ख़ैरात:रमज़ान में सदक़ा और ख़ैरात करने का सवाब बहुत ज़्यादा है। ग़रीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करें।
रोज़े के आध्यात्मिक फ़ायदे
- तक़वा:रोज़ा हमें परहेज़गार बनाता है और हमारे अंदर अल्लाह का ख़ौफ़ पैदा करता है।
- सब्र:रोज़ा सब्र सिखाता है। भूख और प्यास सहन करने से हमारी इच्छाशक्ति मज़बूत होती है।
- रूहानी तहारत:रोज़ा हमारी रूह को पाक करता है और हमें अल्लाह के करीब लाता है।
रोज़े के दौरान ग़लतियाँ और उनका सुधार
- बेकार की बातें करना:रोज़े के दौरान बेकार की बातें करने से बचें। इससे रोज़े की फ़ज़ीलत कम हो जाती है।
- जल्दबाज़ी में इफ़्तार करना:इफ़्तार का वक़्त होने से पहले रोज़ा खोलना ग़लत है। मग़रिब की अज़ान सुनकर ही इफ़्तार करें।
- सहरी न खाना:सहरी न खाने से रोज़े की कमज़ोरी महसूस होती है। सहरी खाना सुन्नत है और इसमें बरकत है।
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निष्कर्ष
रोज़ा सिर्फ़ भूख और प्यास का नाम नहीं है, बल्कि यह एक पूरी तरह से इबादत और अल्लाह के करीब आने का ज़रिया है। अगर हम सुन्नत के हिसाब से रोज़ा रखें, तो हम इसकी पूरी फ़ज़ीलत हासिल कर सकते हैं। रमज़ान के इस पाक महीने में अल्लाह से दुआ करें कि वह हमारे रोज़ों को क़ुबूल करे और हमें अपनी रहमत से नवाज़े।
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